हिन्दू एक जीवन पद्दति हे जिसका कोई एक ही आकर प्रकार नहीं है, शंकराचार्य, दयानंद सरस्वती, विवेकानंद से लेकर राजाराममोहन राय, लोकमान्य तिलक , गोखले , बुद्ध, महावीर, गांधी, ओशो, आदि अनेक महामनाओ ने अपने अपने ढंग और समझ से हिन्दू अर्थात् सनातन धर्म पद्दति को जिया, और आज आप और हम जी रहे हे, अपनी अपनी तरह,हिन्दू जीवन पद्दति में इसीलिए प्रत्येक संस्कार के कई विकल्प भी हे, साधुओं, पीर, फकीरों से लेकर बच्चो को समाधी दी जाती है, अतः कल्याण कार्यो, त्याग में प्रवर्त हो,यही है असली हिंदुत्व
द्रविड़ भी सनातन हिन्दुओ की एक शाखा हे, जिसके बारे में अवलोकन करे, विशेषकर पेरियार को उसके आंदोलन को समझे
द्रविड़ दक्षिण एशिया से संबंधित हिन्दू है* स्कन्दपुराण के अनुसार विन्ध्याचल से दक्षिण भरत का समग्र भूभाग पञ्च द्रविड कहलाता है, प्राचीन भारत के इतिहास मे विन्ध्याचल की उत्पत्ति से ही वैदिक ब्राह्मण दो तरफ हो गये,उत्तरमे औत्तरीय पथ के अनुयायी पञ्चगौड और दक्षिण मे दाक्षिणात्य पथ के अनुयायी पञ्चद्रविड | पञ्चगौड मे गौड,सारस्वत,कान्यकुब्ज,मैथिल और औत्कल है
पञ्चद्रविडमे- द्रविड, कार्णाटक,तैलंग,महाराष्ट्र और गौर्जर है |भारत के सभी ब्राह्मण जाति इन्ही दश वर्ग मे आते है |उनमे से द्रविड यह शब्द द्राविडौं की प्रिय है |
द्रविड़ भाषायें, एक भाषा परिवार जिसमें तमिल, तेलुगु, कन्नड और मलयालमप्रमुख हैं – भाषा क्षेत्र दक्षिण भारत एवं श्रीलंका
पेरियारइरोड वेंकट नायकर रामासामी
17 सितम्बर, 1879 – 24 दिसम्बर, 1973
इरोड वेंकट नायकर रामासामी , जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ – सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे। इन्होने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था। हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया। भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग को लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है।
पेरियार का जन्म 17 सितम्बर 1879 को पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न, परम्परावादी हिन्दू परिवार में हुआ था। १८८५ में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लिया। पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। उनके घर पर भजन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे इन उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे।
हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही कुछ परस्पर विरोधी बातों के ,बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरूद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे।उन्होने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया। १९ वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की १३ वर्षीया स्त्री से हुई। उन्होने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया।
१९०४ में पेरियार ने एक ब्राह्मण, जिसका कि उनके पिता बहुत आदर करते थे, के भाई को गिरफ़्तार किया जा सके न्यायालय के अधिकारियों की मदद की। इसके लिए उनके पिता ने उन्हें लोगों के सामने पीटा। इसके कारण कुछ दिनों के लिए पेरियार को घर छोड़ना पड़ा। पेरियार काशी चले गए। वहां निःशुल्क भोज में जाने की इच्छा होने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था। ब्राह्मण नहीं होने के कारण उन्हे इस बात का बहुत दुःख हुआ और उन्होने हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली। इसके लिए उन्होने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वे हमेशा नास्तिक रहे।
इसके बाद उन्होने एक मन्दिर के न्यासी का पदभार संभाला तथा जल्द ही वे अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर १९१९ में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली। इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए। केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था। उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया।
कांग्रेस का परित्यागयुवाओं के लिए कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतते देख उनके मन में कांग्रेस के प्रति विरक्ति आ गई। उन्होने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष दलितों तथा पीड़ितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भा रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी।अंततः उन्होने कांग्रेस छोड़ दिया। दलितों के समर्थन में १९२५ में उन्होने एक आंदोलन भी चलाया। सोवियत रूस के दौरे पर जाने पर उन्हें साम्यवाद की सफलता ने बहुत प्रभावित किया। वापस आकर उन्होने आर्थिक नीति को साम्यवादी बनाने की घोषणा की। पर बाद में अपना विचार बदल लिया।
फिर इन्होने जस्टिस पार्टी, जिसकी स्थापना कुछ गैर ब्राह्मणों ने की थी, का नेतृत्व संभाला। १९४४ में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्होने अपने से कोई २० साल छोटी स्त्री से शादी की जिससे उनके समर्थकों में दरार आ गई और इसके फलस्वरूप डी एम के (द्रविड़ मुनेत्र कळगम) पार्टी का उदय हुआ। १९३७ में राजाजी द्वारा तमिलनाडु में आरोपित हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का उन्होने घोर विरोध किया और बहुत लोकप्रिय हुए। उन्होने अपने को सत्ता की राजनीति से अलग रखा तथा आजीवन दलितों तथा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए प्रयास किया।