ऋग्वेद : मनुर्भव – मनुष्य बनो !
1. एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति | (1|164|46) एकेश्वर को विद्वान लोग अनेक प्रकार से पुकारते हैं |
2. स्वस्ति पन्थामनुचरेम | (5|51|15) कल्याण मार्ग का अनुसरण करें |
3. विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव | यद् भद्रं तन्न आसुव | (5|85|5) विश्व देव सविता बुराइयां दूर करावें जो कल्याणकारी है, वह प्रदान करें |
4. उप सर्प मातरं भूमिम् | (10|18|10) मातृ भूमि की सेवा करें |
5. सं गच्छध्वम् सं वदध्वम् | (10|181|2) सब साथ चलें सब साथ मिलकर बोलें |
यजुर्वेद : सुमना भव | अच्छे मन वाले बनें !
6. ऋतस्य पथा प्रेत | (7|45) धर्म के मार्ग पर चलें |
7. भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम | (25|11) मंगलकारी वचन कानों से सुनें |
8. तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु | (34|1) यह मेरा मन शुभ और कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो |
9. मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे | (36|18) मित्र की दृष्टि से सर्वत्र देखें |
10. मा गृधा कस्य स्विद धनम् | (40|1) किसी अन्य के धन का लालच नहीं करें |
सामवेद : सरस्वन्तम् हवामहे | परमेश्वर का आवाहन है !
11. अध्वरे सत्य धर्माणं कविम् अग्निम् उप स्तुहि | (32) यज्ञ में सत्य धर्मरत कवि अग्नि की स्तुति करें |
12. ऋचा वरेण्यम् अवः यामि | (48) वेद मंत्रों से श्रेष्ठ रक्षण मांगता हूँ |
13. मंत्र श्रुत्यं चरामसि | (176) मंत्र श्रुति का हम पालन करते हैं |
14. जीवा ज्योति रशीमहि | (259) सभी जीव परम ज्ञान प्रकाश को प्राप्त करें |
15. यज्ञस्य ज्योतिः प्रियं मधु पवते | (15) यज्ञ की ज्योति प्रिय मधुर भाव उत्पन्न करती रहै |
अथर्ववेद : मानवो मानवम् पातु – मनुष्य मनुष्य का पोषण करे!
16. माता भूमिः पुत्रोSहम् पृथिव्याः | माता भूमि है, पुत्र है हम पृथ्वी के |
17. यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः | (9|10|14) परोपकार परमार्थ कार्यक्रम विश्व भुवन का केन्द्र में है |
18. ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत | (11|5|19) ब्रह्मचर्य के तप से देवों ने मृत्यु पर विजय अर्थात अमरतत्व योग की प्राप्ति की |
19. मधुमतीं वाचमुदेयम | (16|2|2) मैं सदैव मीठी वाणी बोलूँ |
20. सर्वमेव शमस्तु नः | (19|9|14) हम सभी शान्तिप्रद हो |