दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ
1 मई अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस या मई दिन मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है
जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी।
इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हे मार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और सात मज़दूर मार दिए। “भरोसेमंद गवाहों ने तस्दीक की कि पिस्तौलों की सभी फलैशें गली के केंद्र की तरफ से आईं जहाँ पुलिस खड़ी थी और भीड़ की तरफ़ से एक भी फ्लैश नहीं आई। इस से भी आगे वाली बात, प्राथमिक अखबारी रिपोर्टों में भीड़ की तरफ से गोलीबारी का कोई ज़िक्र नहीं। मौके पर एक टेलीग्राफ खंबा गोलियों के साथ हुई छेद से पुर हुआ था, जो सभी की सभी पुलिस वाले तरफ़ से आईं थीं।”
इन घटनाओं का अमेरिका
पर और दुनिया पर एकदम से बड़ा प्रभाव पड़ा , लोग अंदर ही अंदर उद्वेलित ही उठे, कुछ समय के बाद अमेरिका को 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर देना पड़ा।
मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित क़ानून लागू है। अर्थात सप्ताह में 48 घण्टे अधिकतम,
कुछ देश मे संगठन 6 घण्टे की शिफ्ट अर्थात 24 घण्टे में 3 के स्थान पर 4 शिफ्ट व पांच दिन निर्धारित कर दिए है, नीदरलैंड में सप्ताह में 30 घण्टे और फ्रांस में 35 घण्टे निर्धारित है, अधिकतर देश अब 40 घण्टे प्रतिसप्ताह की और अग्रसर है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघठन, मज़दूर आंदोलनो , समाजवादियों, साम्यवादियों, शोषित पीड़ित वंचितो के संगठनों द्वारा भी इस दिवस का समर्थन किया जाता है,
किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में श्रम की, मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है।
उनकी बड़ी संख्या समाज संघठन व्यवस्था की कामयाबी के लिए तन मन धन से जुटी होती है। किसी भी उद्योग या किसी भी संगठन में सफलता के लिए स्वामी, संसाधन, श्रमिक और समाज अहम फैक्टर होते हैं।
कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता।
चेन्नई के मैरिना बीच पर मज़दूर की जीत
भारत में एक मई का दिवस सब से पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था।
उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर प्रामाणित कर लिया गया था। इस की शुरूआत भारतीय मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने शुरू की थी। भारत में मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये।
भारत समेत लगभग 80 मुल्कों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है। इसके पीछे तर्क है कि यह दिन अंतर्राष्ट्रीय श्रम या श्रमिक दिवस के तौर पर प्रामाणित हो चुका है।
महात्मा गांधी व अन्य विचारकों ने भी कहा है कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है।
उद्योगपति, मालिक या प्रबंधक समझने की बजाय अपने-आप को ट्रस्टी समझने लगे। लोकतन्त्रीय ढांचो में तो सरकार भी लोगों की तरफ़ से चुनी जाती है जो राजनीतिक लोगों को अपने देश की बागडोर ट्रस्टी के रूप में सौंपते हैं। वह प्रबंध चलाने के लिए कारिंदे, कामगारों और किसानों की बेहतरी, भलाई, विकास, अमन और कानून व्यवस्था बनाऐ रखने के लिए वचनबद्ध होते हैं।
मज़दूरों और किसानों की बड़ी संख्या का राज प्रबंध में सबसे बड़ा योगदान है। सरकार का रोल औद्योगिक शान्ति, उद्योगपतियों और मज़दूरों दरमियान सुखदायक, शांतमयी और पारिवारिक संबंध कायम करना, झगड़े और टकराव की सूरत में उन का समझौता और सुलह करवाने का प्रबंध करना और उनके मसलों को औद्योगिक ट्रिब्यूनल कायम कर निरपेक्षता और पारदर्शी ढंग से कुदरती न्याय के उसूल के सिद्धांत अनुसार इंसाफ़ प्रदान करना और उन की बेहतरी के लिए समय -समय से कानूनी और विवरण प्रणाली निर्धारित करना है।
भारतीय संदर्भ में गुरू नानक देव जी ने किसानों, श्रमिको और कामगारों के हक में आवाज़ उठाई थी और उस समय के अहंकारी और लुटेरे हाकिम ऊँट पालक भागों की रोटी न खा कर उस का अहंकार तोड़ा और भाई लालो की काम की कमाई को सत्कार दिया था।
गुरू नानक देव जी ने ‘काम करना, नाम जपना, बाँट छकना और दसवंध निकालना’ का संदेश दिया। गरीब मज़दूर और कामगार का विनम्रता का राज स्थापित करने के लिए मनमुख से गुरमुख तक की यात्रा करने का संदेश दिया।
1 मई को भाई लालो दिवस के तौर पर भी सिक्ख समुदाय में मनाया जाता है।
इसी दिन (1 मई) को महाराष्ट्र में महाराष्ट्र दिवस या श्रम दिवस मनाते है। महाराष्ट्र के सभी ज़िलों में मज़दूर दिवस मनाया जाता है। यहाँ जितने भी व्यापारी , कारीगर होते है वे सभी छुट्टी रखते है।