सागर। बुंदेलखंड में कहावत है -‘बनी ने बिगाड़ी तो बुंदेला काय के’। कुछ इसी तर्ज पर क्षेत्र की राजनीति के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में बंदूक, बिरादरी और बागी हमेशा से प्रमुख कारक रहे हैं। इस बार भी हालात जुदा नहीं हैं। बंदूक यहां की शान है। कोई भी नेता यहां अपने बंदूकधारी सहायक के बिना शायद ही दिखे। बिरादरी यानी जाति यहां की राजनीति में बड़ा महत्व रखती है। इसी तरह कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता यदि एक बार टिकट मांगने निकल जाएं तो फिर घर नहीं बैठते। मिला तो ठीक, नहीं तो दूसरे दल से या निर्दलीय चुनाव लड़ना तय रहता है।
जोन के तीन जिले छतरपुर, टीकमगढ़ और पन्ना की राजनीतिक तासीर कुछ अलग है। उप्र की सीमा से सटे इन जिलों में वहां की राजनीति का असर साफ दिखाई देता है। सपा और बसपा यहां अपनी जड़ें जमा चुकी हैं। जोन के दूसरे हिस्से में सागर और दमोह जिले हैं जो कांग्रेस-भाजपा की परंपरागत राजनीति के लिए जाने जाते हैं।
पिछले चुनाव में उप्र की सीमा से लगे विधानसभा क्षेत्र पृथ्वीपुर में भाजपा प्रत्याशी को गोली मार दी गई थी।