केंद्र सरकार और नए कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत की पहल भले ही देर से की गई हो लेकिन सहमति इस बात पर ज़रूर है कि बातचीत ही एक सही विकल्प है.
बातचीत के दौरान दोनों पक्षों को एक दूसरे के तर्क को मीडिया के बजाए सीधे आमने-सामने बैठकर सुनने का अवसर मिलेगा. मंगलवार को हुई बातचीत में तीन बजे दोपहर को पंजाब के 32 किसानों के प्रतिनिधि शामिल थे और सात बजे शाम वाली बातचीत में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दूसरे सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल थे.
सरकार ने किसानों की समस्या सुनने और उसका हल खोजने के लिए कमिटी बनाने की पेशकश की, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया. ये मीटिंग बेनतीजा ख़त्म हुई. अब सरकार और किसानों के प्रतिनिधि गुरुवार को 12 बजे फिर मुलाक़ात करने वाले हैं.
बातचीत तो ठीक है, लेकिन कई लोगों का मानना है कि सरकार और किसानों के बीच विश्वास की सख्त कमी है. दोनों को एक दूसरे की बातों और तर्क पर ज़रा भी यक़ीन नहीं है और यहाँ तक कि केंद्र सरकार और उन राज्य सरकारों के बीच भी विश्वास की कमी पाई जाती है जो इन तीन नए क़ानूनों से ख़ुश नहीं हैं.
मुंबई स्थित आर्थिक विशेषज्ञ विवेक कौल कहते हैं केंद्र सरकार को क़ानून लाने से पहले किसानों और राज्य सरकारों को इसके लिए राज़ी करना चाहिए था.