सुप्रीम कोर्ट ने आधार नंबर की अनिवार्यता और इससे निजता के उल्लंघन पर अहम फ़ैसला सुना दिया है.
सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों वाली संवैधानिक बेंच में से तीन जजों ने बहुमत से बुधवार को कहा कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है.
हालांकि पांच जजों वाली बेंच ने आधार पर सर्वसम्मति से फ़ैसला नहीं सुनाया है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार नंबर को पूरी तरह से असंवैधानिक करार दिया है.
आधार से जुड़े शुरुआती फ़ैसले जस्टिस एके सीकरी ने सुनाए. इस फ़ैसले में कहा गया कि आधार कहां ज़रूरी है और कहां ज़रूरी नहीं है.
आधार कहां ज़रूरी, कहां नहीं
बैंक अकाउंट और मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है.
सीबीएसई, यूजीसी, निफ्ट और कॉलेज आधार नंबर की मांग नहीं कर सकते हैं.
स्कूल में दाखिले के लिए आधार नंबर की मांग नहीं की जा सकती है.
किसी भी बच्चे को आधार के बिना सरकारी योजनाओं का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बाक़ी पहचान पत्र को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.
निजी कंपनियां आधार नंबर की मांग नहीं कर सकती हैं.
पैन कार्ड से आधार को जोड़ना ज़रूरी है
आधार
‘संविधान से धोखा’
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वक़ील प्रशांत भूषण ने कहा यह ऐतिहासिक फ़ैसला है. उन्होंने कहा, ”आम आदमी को यह राहत देने वाला फ़ैसला है. अब प्राइवेट कंपनिया आधार की मांग नहीं कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बैंक और टेलिकॉम में आधार को असंवैधानिक करार दिया है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार को मनी बिल की तरह पास करना संविधान से धोखा है.”
इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खनविलकर, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड पर 27 याचिकाओं पर रिकॉर्ड 38 दिनों तक सुनवाई चली थी. इसमें एक याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुटुस्वामी भी शामिल थे.
याचिका में आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. सभी याचिकाकर्ताओं का कहना था कि आधार से निजता का उल्लंघन हो रहा है.
12 नंबर वाला ये पहचान कार्ड सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार ने अनिवार्य कर दिया था.
आधार केस में एक याचिकाकर्ता, ऊषा रामानाथन ने कोर्ट के फ़ैसले पर कहा, “लोगों की व्यक्तिगत जानकारी भविष्य का एक ऐसा संसाधन है जिसके दम पर सरकार आने वाले समय में एक अर्थव्यवस्था तैयार करना चाहती है. ऐसा करना सही है या ग़लत, ये एक बड़ा प्रश्न है. ये मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ सवाल है. मुझे नहीं लगता है कि कोर्ट के इस फ़ैसले से लोगों के वो मौलिक अधिकार सुरक्षित हुए हैं. ”
उन्होंने कहा, “फ़ैसले में तीसरा और सबसे बड़ा बिंदू है कि कोर्ट ने देश के ग़रीबों को इस योजना को चलाये रखने का कारण बनाया है. उन्हीं लोगों के अधिकारों के लिए ये मामला कोर्ट गया था. वो ही लोग हैं जिन्हें अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए और अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ये सबसे ज़्यादा प्रभावित लोग हैं. कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इनका ज़िक्र किया है. ”
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‘मुख्य समस्या आधार नहीं, योजनाओं को इससे जोड़ना है’आधार की अनिवार्यता और उससे निजता के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फ़ैसला दिया.
शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने बहुमत से कहा कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है.
लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने इससे अलग राय जताते हुए आधार को असंवैधानिक क़रार दिया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार एक्ट को धन विधेयक की तरह पास करना संविधान के साथ धोखा है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वो जस्टिस सीकरी के सुनाए फ़ैसले से अलग राय रखते हैं.
उन्होंने कहा कि आधार एक्ट को राज्यसभा से बचने के लिए धन विधेयक की तरह पास करना संविधान से धोखा है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन है.
‘सभी बैंक खाताधारक धांधली करने वाले नहीं’
सुप्रीम कोर्ट
अनुच्छेद 110 ख़ास तौर पर धन विधेयक के संबंध में ही है और आधार क़ानून को भी इसी तर्ज़ पर पास किया गया था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वर्तमान रूप में आधार एक्ट संवैधानिक नहीं हो सकता.
फैसला तीन हिस्सों में सुनाया गया. पहला हिस्सा जस्टिस एके सीकरी ने अपने, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के लिए फैसला पढ़ा.
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस ए भूषण ने अपने व्यक्तिगत विचार लिखे.
जस्टिस सीकरी ने आधार एक्टर के सेक्शन 57 को रद्द कर दिया, जिसके तहत निजी कंपनियों को आधार डेटा हासिल किए जाने की इजाज़त थी और कहा कि आधार का डेटा छह महीने से ज़्यादा स्टोर करके नहीं रखा जा सकता.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मोबाइल हमारे वक़्त में जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है और इसे आधार से जोड़ दिया गया. ऐसा करने से निजता, स्वतंत्रता और स्वायत्तता को ख़तरा है. उन्होंने कहा कि वो मोबाइल से आधार नंबर को डीलिंक करने के पक्ष में हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के संबंध में कहा कि यह क़ानून मानकर क्यों चल रहा है कि सभी बैंक खाताधारक धांधली करने वाले हैं.
उन्होंने कहा कि यह मानकर चलना कि बैंक में खाता खोलने वाला हर व्यक्ति संभावित आतंकी या धांधली करने वाला है, यह अपने आप में क्रूरता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि डेटा के संग्रह से नागरिकों की व्यक्तिगत प्रोफ़ाइलिंग का भी ख़तरा है. इसके ज़रिए किसी को भी निशाना बनाया जा सकता है.
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‘कल्याणकारी योजनाओं से महरूम नहीं कर सकते’
आधार
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार नंबर सूचना की निजता, स्वाधीनता और डेटा सुरक्षा के ख़िलाफ़ है. इस तरह के उल्लंघन यूआईडीएआई स्टोर से भी सामने आए हैं. उन्होंने इसे निजता के अधिकार के ख़िलाफ़ भी बताया.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे संवेदनशील डेटा के दुरुपयोग होने की आशंका है और थर्ड पार्टी के लिए यह आसान है. उन्होंने कहा कि निजी कारोबारी भी बिना सहमति या अनुमति के व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग कर सकते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार प्रोग्राम समाधान तलाशने में नाकाम रहा है.
हालांकि जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार पंजीकरण के लिए यूआईडीएआई ने बहुत कम डेमोग्राफिक और बायोमीट्रिक डेटा जुटाया है और विशिष्ट पहचान के इस कार्यक्रम ने समाज के वंचित तबकों को पहचान दी है और उन्हें सशक्त बनाया है.
आधार
वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार के बिना कल्याणकारी योजनाओं से महरूम करना नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई के पास लोगों के डेटा की सुरक्षा के लिए कोई जवाबदेही नहीं है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि डेटा की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह की मशीनरी का न होना ख़तरनाक है. उन्होंने कहा कि अभी तक आधार के बिना भारत में रहना असंभव था, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था.