तीन तलाक पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ मे ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हुई। संविधान पीठ ने जानना चाहा कि क्या ऐसा कोई रिवाज जो गुनाह हो, शरीयत का हिस्सा हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने खुर्शीद से ये भी पूछा कि क्या किसी भी गुनाह को ईश्वर की मर्जी माना जा सकता है या फिर इसे इंसानों का बनाया कानून कहना ज्यादा सही होगा? जजों ने पूछा कि भारत से बाहर भी तीन तलाक की प्रथा प्रचलित है? अदालत ने जानना चाहा कि दूसरे देशों में ये प्रथा कैसे खत्म हुई? अदालत ने माना कि तीन तलाक इस्लाम में पति-पत्नी के बीच के रिश्तों को खत्म करने का ‘सबसे खराब’ और ‘अवांछनीय’ तरीका है
इस दोरान कोर्ट ने कहा कि वो विचार करेगा कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है कि नहीं और यदि है तो क्या इसे मौलिक अधिकार के तहत लागू कराया जा सकता है। कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि फिलहाल बहुविवाह पर विचार नहीं किया जाएगा। यह पूरी सुनवाई छह दिनों में समाप्त होगी।
एक बार में तीन तलाक कह कर बीवी से संबंध विच्छेद करने का मुसलमानों में प्रचलित चलन पर पहली सुनवाई में कोर्ट का रुख रहेगा ये जानने की लोगों में उत्सुकता इतनी प्रबल थी कि गर्मी छुट्टियों के बावजूद अदालत खचाखच भरी थी। ठीक 10.30 मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर , न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंग्टन फली नारिमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित व न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर ने कोर्ट में प्रवेश किया। अदालत बैठी और सुनवाई शुरू हुई। जैसे ही वकीलों ने बताया कि ये मामला मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, बहु विवाह और निकाह हलाला से जुड़ा है। तभी मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई का दायरा और रूपरेखा स्पष्ट करते हुए कहा कि अदालत मुख्यता तीन सवालों पर विचार करेगी।
पहला – क्या तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। यदि हां तो क्या इसे मौलिक अधिकार (धार्मिक आजादी का अधिकार) के तहत लागू कराया जा सकता है। अगर ये निष्कर्ष निकलता है कि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा है तो फिर कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। पीठ ने सुनवाई की शुरुआती रुपरेखा तय करते हुए कहा कि 2 दिन याचिकाकर्ताओँ की बहस सुनी जाएगी और उसके बाद 2 दिन प्रतिपक्षियों की फिर दोनों पक्षों को एक – एक दिन जवाब देने के लिए मिलेगा।
बहुविवाह पर नहीं होगा विचार
तीन तलाक के साथ बहुविवाह और निकाह हलाला का मुद्दा उठाए जाने पर न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने कहा कि ये पीठ सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे पर विचार करने बैठी है। बहुविवाह के मुद्दे पर विचार नहीं किया जा रहा है।
पुरुष सीधे तलाक दे देता है और पत्नी कोर्ट जाए
शायरा बानों के वकील अमित सिंह चड्ठा ने तीन तलाक का विरोध करते हुए कहा कि ये नियम भेदभाव पूर्ण है। पुरुष तीन बार तलाक कह कर पत्नी को छोड़ देता है और पत्नी को तलाक लेने के लिए कोर्ट में जाना पड़ता है। उन्होंने मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून 1939 का हवाला देते हुए ये बात कही। जिसमें कि मुस्लिम महिला को पति से तलाक लेने के आधार तय हैं और अदालत में अर्जी देनी होती है। पति और पत्नी के लिए अलग प्रक्रिया कैसे हो सकती है। इस पर जस्टिस जोसेफ ने सवाल किया कि क्या पुरुषों के लिए कोई आधार तय नहीं हैं। कोर्ट को बताया कि कानून में पुरुषों के लिए कोई आधार तय नहीं हैं। वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कानून में नहीं हैं लेकिन कुरान में कहा गया है कि तलाक तर्कसंगत आधार पर होना चाहिए। इस्लाम में पहले मध्यस्थता का तंत्र था फिलहाल कोई ऐसा तंत्र नहीं है।
कई इस्लामिक देशों में खत्म हो चुका है तीन तलाक
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पाकिस्तान बंगलादेश और अफगानिस्तान सहित बहुत से इस्लामिक देशों में एक बार में तीन तलाक खत्म हो चुका है। भारत धर्म निरपेक्ष देश है यहां भी खत्म होना चाहिए। ये इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे धार्मिक आजादी के अधिकार के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता।
इंद्रा जयसिंह ने कहा कि पर्सनल ला संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा। इस हिसाब से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कानून नहीं रह सकता। पीठ ने इस दलील से सहमति जताई की शरीयत ने शरीयत एक्ट 1937 के रूप में कानून की शक्ल ले ली है और अब ये पर्सनल ला कानून है। जयसिंह ने कहा कि एक तरफा तलाक गैर कानूनी है
मुस्लिम मर्दो के पास क्या होगा विकल्प
केंद्र की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि सरकार तीन तलाक को लिंग आधारित भेदभाव मानती है ये बराबरी के हक का उल्लंघन करता है ऐसे में सरकार तीन तलाक का विरोध करती है। इन दलीलों पर जस्टिस ललित ने कहा कि अगर तलाक पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा तो मुस्लिम मर्दो के पास क्या विकल्प होगा।
