वीरांगना पद्मावती की छवि उनके इतिहास को ही नहीं , ये बॉलीवुड वाले प्रायः सभी आदर्श महापुरुषो के चरित्र कृतित्व के प्रति अन्याय कर लांछन लगाते रहे हे,
हमारा समाज जनमानस जो इन फ़िल्मी भाँडो की पूजा में जीवन का सार देखता रहा है, वो बेचारा ऐसी स्थिति में बेबस लुटा पिटा महसूस करता है,
शर्म की बात तो ये हे की इन बहुरूपियों की असलियत जानकर भी आप हम लोग इनको महत्व देते है, दिनरात इनके देह आकर्षण में वशीभूत रहते है ,
तो अब भुगतो, करवाते रहो अपने आस्था के प्रतीकों से खिलवाड़ ,
ये आज की ही बात नहीं है, पीके हो या अन्य लगातार बॉलीवुड हमारे समाज संस्कृति धर्म के मर्म पर कुठाराघात कर, प्रगतिशीलता और खुलेपन का आवरण ओढ़ बॉलीवुड ने इसे नष्ट भ्रष्ट करने में खुद को लगा रखा है, इसमें विधर्मियो की साजिशों के आरोप भी लगे है,लेकिन हम अपने समाज की भूमिका का आत्मनिरीक्षण पहले कर लेवे.
प्रायः संयम और धैर्य रखने और आलोचनाओं को सुनकर सुधरने को तैयार रहने वाले समाज के बल को, उसकी भीरुता समझ, ये कला की पैकेजिंग में देह को बेचकर कमाने खाने वाले लोग, जब अब उसके सर पर ही बैठ गंदगी करने लगे तो, लोगो को बेचैनी हो रही है, आपके धन से समर्थन से ही बने हे, ये कृतघ्न भस्मासुर , समाज जागरूक हो अपनी कृपा इन बहुरूपीओ से बापस ले ले, इन नोटंकीबाजो का पूर्णरूपेण बहिष्कार करे,फिर औंधे मुँह गिरेंगे, तब ही ये समझेंगे, नाक रगड़ेगे
करणी सेना के युवकों ने तो समाज की मूक आवाज को रौशनी दे दी है, अब ये तो लोगो पर निर्भर करता है की वे आत्मसम्मान से जिए , जागे या अपने चेहरे पर और कालीख पुतवाते रहे, सिलेक्टिव न् बने इन फ़िल्मी भाँडो का 100% पूर्ण बहिष्कार करे, चाहे उनका काम फिल्म कैसा भी हो उसे न् देखे , इन पर न् पिघले, फिर देखे ये पाखंडी कैसे दुम हिलाएंगे, संस्कृति की रक्षा का दायित्व केवल करणी सेना के वीर पुरुषार्थियो का ही नही, आप हम सबका हे
